पंजाब के राज्यपाल को आग से ना खेलने की चेतावनी देने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल को लताड़ लगाते पूछा है की तीन साल से आप सो रहे थे क्या..? चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पंजाब के राज्यपाल की भूमिका की सुनवाई करते हुए इस पद की शक्तियों और सीमाओं की विस्तार से व्याख्या की.दरअसल मोदी द्वारा नियुक्त राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित आप सरकार द्वारा विधानसभा में पारित कराए चार विधेयकों पर कुंडली मार कर बैठे है.सुप्रीम कोर्ट ने माना की विधानसभा सत्र की वैधानिकता की आड़ लेकर राज्यपाल विधेयकों को नहीं रोक सकते.चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने राज्यपाल को दो टूक शब्दों में चेताया की विधेयकों को रोक कर आप आग से खेल रहे हैं.!
सुप्रीम कोर्ट की इस तल्ख़ टिप्पणी के बाद तमिलनाडु के राज्यपाल ने एक दर्जन में से दस बिल सरकार को लौटा दिए हैं जबकि दो राष्ट्रपति को भेज दिया.तब तमिलनाडु सरकार ने नहले पर दहला जड़ते हुए विधानसभा सत्र बुला इन बिलों फिर से पारित करवा लिया.यह कौन नहीं जानता की सूबों के राजभवन केंद्र में सत्तारुढ़ पार्टी के चुके नेताओं और रिटायर पसंदीदा नौकरशाहों के पुनर्वास का अड्डा बन कर रह गए हैं.केंद्र में सरकार बदलते ही राज्यपालों को ताश के पत्तों की मानिंद फेंट कर बूढ़े,थके और लाचार नेताओं की ताजपोशी कर दी जाती है.जिन राज्यों और केंद्र मे एक ही पार्टी का राज होता है वहां तो अमन रहता है.पर जिन राज्यों मे दीगर पार्टी सत्ता मे रहती है वहां के लाट साहब की कारगुजारियों से सब परिचित हैं.गैर भाजपा शासित सूबों में वे वही सब कर रहे हैं.
दिलचस्प यह की जब कांग्रेस राज किया करती थी तब भाजपा राजभवनों को रिटायर कांग्रेसियों का अड्डा और सीबीआई को कांग्रेस ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन कहा करती थी.कभी पार्टी विथ डिफरेंस का दावा करने वाली भाजपा इसमे ईडी को शामिल कर निर्लज्जता से खुद वही हथकंडे अपना पार्टी विथ सिमिलरिटी में कांग्रेस से आगे निकल गई है.सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व चीफ जस्टिस को राज्यपाल और एक को राज्यसभा में नामजद कर मोदी न्यायपालिका पर डोरे डालते रहे हैं.इस पर उन्हें कठघरे पर खड़ा करने और कौन है पप्पू जैसे प्रहार करने वाली तृणमूल की तेज तर्रार सांसद महुआ मोइत्रा के साथ इन दिनों क्या हो रहा है,यह पूरा देश देख रहा है.
आजादी के बाद लोकतंत्र के राजाओं यथा राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री,राज्यपाल, मुख्यमंत्री और मंत्रियों की शानो-शौकत मे लगातार इजाफा हो रहा है.मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों में एक नहीं दो-दो राजभवन मौजूद हैं.भोपाल मे 25-30 एकड़ मे फैला राजसी ठाट-बाट वाला मुख्य राजभवन है तो दूसरा पचमढ़ी मे,जो कभी गर्मियों मे राजधानी हुआ करती थी.1967 के बाद राजधानी शिफ्ट होना बंद होने से मुख्यमंत्री-मंत्रियों के बंगले होटल और गेस्ट हाउस मे तब्दील हो गए पर राजभवन जस का तस है.यहाँ का राजभवन भी 22.84 एकड़ मे फैला है,पर राज्यपाल यहाँ भूले-भटके आते हैं.सूचना के अधिकार से मिली जानकारी से पता चला की वहां के अमले के वेतन भत्तों पर हर साल कुल मिलाकर 12-15 लाख रुपये खर्च हो जाते हैं. इसके अलावा रखरखाव पर भी मोटी रकम हर साल खर्च होती है.
राज्यपालों की भूमिका पर लौटते हैं.पंजाब और तमिलनाडु के अलावा बंगाल, केरल,,तेलंगाना,महाराष्ट्र और दिल्ली आदि की गैर भाजपा सरकारें भी राज्यपालों के कोप का शिकार हैं.सुप्रीम कोर्ट जल्द ही केरल और तमिलनाडु के राज्यपालों पर भी सुनवाई करने वाला है.जाहिर है गैर भाजपा शासित राज्यों के राज्यपाल मोदी सरकार के इशारे पर ही वहां की सरकारों के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं वर्ना उनकी क्या बिसात जो चुनी सरकारों को आँखें दिखाते..? कुल मिलाकर ये सारे राज्यपाल मोदी के एजेंडे और इशारे पर ही काम कर रहे हैं. इसलिए आग से खेलने वाली सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी भरी टिप्पणी अप्रत्यक्ष तौर पर मोदी सरकार के लिए नसीहत है.अब समझदार के लिए इशारा काफी है.(टाइम्स ऑफ़ इंडिया/दैनिक भास्कर की खबर)
अपनी बेशुमार दौलत का बड़ा हिस्सा दानपुण्य के लिए समर्पित करने वाले देश के अमीरों की ताजा सूची में शीर्ष पर ना तो मुकेश अंबानी हैं और ना ही गौतम अडाणी.सबसे ऊपर हैं एचसीएल के शिव नाडार और विप्रो के अजीम प्रेमजी.अंबानी तीसरे पर तो अडाणी पांचवे स्थान पर हैं.पिछले साल अंबानी को पछाड़ अमीर बन विवादों में आ चुके अडाणी तो तब चैरिटी में सातवें स्थान पर थे.!अंबानी सालों से रईस नंबर वन हैं पर ऐसा भी हुआ जब वो चैरिटी में अग्रणी दस हस्तियों की सूची से नदारद थे.कुछ साल पहले वो छठवें-सातवें पायदान पर रहे थे और अब जैसे तैसे तीसरे स्थान पर हैं.कुल मिला कर बेशुमार दौलत वाले दोनो रईस चैरिटी मे कंजूस ही माने जाएंगे.
देश के इन धनपतियों की रईसी के किस्से जानना जरूरी है.सबसे बड़े धनपति मुकेश अम्बानी ने अपने विश्वस्त सहयोगी मनोज मोदी को मुंबई के पाश इलाके में 1500 करोड़ कीमत का 22 मंजिला घर बतौर तोहफा भेंट किया है.मुकेश ने न्यूयार्क की आवासीय प्रापर्टी 74.57 करोड़ में बेच दी है और दुबई में 1352 करोड़ में हवेली और 640 करोड़ में विला खरीदा है.उन्होंने लंदन में 592 करोड़ में 300 एकड़ में फैला घर भी खरीद लिया.मुकेश अंबानी की दरियादिली घर परिवार और सत्ता के फायदों पर ज्यादा कुर्बान नजर आती है.मुंबई का उनका आशियाना एंटीलिया दुनिया की महँगी प्रापर्टी है और .उनके पास करोड़ों की विशाल लक्जरी याट है समुद्र मे तैरती कोठी नजर आती है.मोदीजी द्वारा जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य के गवर्नर बनाए जाने वाले सतपाल मलिक ने पद पर रहते एक बार कहा था की मुकेश अंबानी ने बेटी की सगाई में ही तीन सौ करोड़ खर्च कर डाले हैं.
अंबानी ने न्यूज चैनल आईबीएन-7 और ईटीवी को खरीद कर नेटवर्क-१८ खड़ा किया जो जाहिर है सत्ता की लाबिंग ही करता है.यही हाल गौतम अडाणी का है जिन्होंने सत्ता को आईना दिखाने वाले एकमात्र न्यूज चैनल एनडीटीवी को प्रणव राय से खरीद सत्ता का समर्थक बना डाला .पहले अमीरों में टाटा और बिड़ला का नाम था पर इनमे किसी ने दौलत का ऐसा भोंडा प्रदर्शन कभी नहीं किया था.अफ़सोस, इस पर सारी राजनैतिक पार्टियों ने चुप्पी साध ली क्योंकि चुनावी चंदा देने वालों की सूची उजागर की जाए तो उसमे अडाणी/अंबानी नंबर-वन हो सकते हैं.? इलेक्टोरल बांड के दान को गोपनीय बनाए रखने और राजनैतिक दलों को सूचना के अधिकार से बाहर रखने की केंद्र की जिद का कहीं यही कारण तो नहीं.?
श्रीराम ग्रुप के फाउंडर त्यागराजन ने 44 कर्मचारियों को तकरीबन सारी संपत्ति दान कर दी है और प्रत्येक को 136 करोड़ मिलेंगे. नारायण मूर्ति के साथ इन्फोसिस की नीव रखने वाले नंदन नीलेकणि ने देश के विख्यात सरकारी इंजीनियरिंग संस्थानों में शुमार आईआईटी मुंबई को 315 करोड़ का दान दे डाला.इंडिया टुडे ने अपने देश के बेस्ट कॉलेज विशेषांक में इसे टाप के दस सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों में दूसरे स्थान पर रखा है.वो इसी कॉलेज में पढ़े हैं.सवाल है की भारत सरकार के सरकारी कॉलेज को दान की भला क्या जरूरत..? मुंबई आईआईटी महँगा और सितारा कॉलेज होने से पहले से ही गले गले तक अत्याधुनिक संसाधनों से लैस है.
बड़ा सवाल है की भारत सरकार के इस सितारा कॉलेज को दान की भला क्या जरूरत..?इसलिए नंदन नीलेकणि .द्वारा एक झटके में इतनी बड़ी राशि सरकारी संस्थान को दान देने से चौंकना स्वाभाविक है.इस प्रकार के दान प्रधानमंत्री राहत कोष में दिए जाते रहे हैं.इसलिए इस दान के अलग अलग निहितार्थ निकाले जा रहे हैं..! क्या यह रकम गरीबों और जरूरतमंदों के किसी कल्याणकारी काम में खर्च नहीं कर सकते थे.? उन्हें डी मार्ट के दमानी से प्रेरणा लेनी थी जिन्होंने इलाज के लिए मुंबई आने वाले वालों के तीमारदारों के ठहरने और खानपान के लिए मेट्रो सिनेमा के पास 53 कमरों वाले गोपाल मेंशन की सुविधां रियायती दर पर उपलब्ध कराई है.(दैनिक भास्कर/दैनिक जागरण की खबरें)
मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज का पूर्व मुख्यमंत्रियों के बारे में सामान्य ज्ञान इतना कमजोर .? मंत्रालय में मूर्ति स्थापना समारोह में उन्होंने फरमाया की अर्जुनसिंह पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने पांच साला कार्यकाल पूरा किया.तथ्य यह है की कार्यकाल पूरा करने वाले पहले मुख्यमंत्री अ कैलाशनाथ काटजू थे.प्रदेश के जनसंपर्क विभाग की वेबसाइट के मुताबिक़ काटजू 31 जनवरी,57 से 11 मार्च,62 तक मुख्यमंत्री रहे थे.उनके पहले कार्यकाल 31 जनवरी,57 से 14 अप्रैल,57 को ना गिनें तब भी चुनाव के बाद 15 अप्रैल,57 से अगले चुनाव 11 मार्च,62 तक वो चार साल 11 महीने मुख्यमंत्री रहे थे.स्वर्गीय अर्जुनसिंह 9 जून,80 से 10 मार्च,85 तक याने चार साल नौ महीने ही मुख्यमंत्री रहे थे.
इसके बावजूद तब के मुख्यमंत्री शिवराज ने गलतबयानी कैसे की.भाषण तैयार करने वाले ने गलत जानकारी दी या उन्होंने\ जानबूझ कर अर्जुनसिंह का महिमामंडन किया क्योंकि पुत्र अजयसिंह मौजूद थे पर काटजू के प्रपौत्र जस्टिस मार्कंडेय काटजू समारोह में नहीं आए.शिवराज और दिग्विजयसिंह भले लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहे हों पर लौह पुरूष और चाणक्य कहे जाने वाले पंडित मिश्र की प्रशासनिक और राजनैतिक गलियारों मे आज भी धाक है और उनकी सख्त हुकूमत को आदर के साथ याद किया जाता है.
पंडित मिश्र की मूर्ति उनकी छवि से मेल नहीं खाती है.यह अंतर सरकारी फोटो और मूर्ति में साफ़ नजर आता है.मूर्ति मे तो उनके व्यक्तित्व का अहम हिस्सा चश्मा ही गायब है जबकि रविशंकर शुक्ल,अर्जुनसिंह और मोतीलाल वोरा आदि को चश्मे में दिखाया गया है.नामपट्टिका पर भी उनका नाम द्वारिका प्रसाद लिखा गया है जबकि सही नाम द्वारका प्रसाद मिश्र है..? कई अन्यों की मूर्तियाँ भी उनकी तस्वीरों से जुदा नजर आती हैं.यह गलतियाँ तब हुईं जब मूर्तियों के निर्माण के लिए दो ढाई बरस का समय मिला था.उनसे कोई सलाह मशविरा का किए जाने को लेकर कई पूर्वों के परिजनों की नाराजगी की खबरें आती रहीं थीं.
फ्रांस की सरकार ने हिजाब पर प्रतिबंध के बाद अब अबाया पहनने पर भी पाबंदी लगा दी है.फ्रांस सरकार का कहना है की हिजाब और अबाया पहनने से धर्म की पहचान होती है जो सेक्युलरिज्म के खिलाफ है और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर सवाल खड़े करती है.अबाया मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला एक किस्म का गाउन जैसा ऑउटफिट है जिसमे चेहरा ढका नहीं रहता है.इस प्रतिबंध को फ्रांस में धर्मनिरपेक्षता को लेकर सरकार की झिझक को खत्म करने वाला बताया जा रहा है.ईरान मे सरकार के कट्टरपंथी कानूनों के बावजूद महिलाएँ हिजाब का बराबर विरोध कर रही हैं
और तो और अफगानिस्तान की तालिबानी हुकूमत के दमन के खिलाफ बेटियाँ उठ खड़ी हुई हैं और शिक्षा का अधिकार मांग रही हैं.इसके बरअक्स अपने देश में हिजाब पर प्रतिबंध को लेकर विवाद होते रहते हैं.कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब पर पाबंदी पर बवाल हो चुका है.मध्यप्रदेश के एक स्कूल में हिजाब अनिवार्य किए जाने की खबर आने पर गिरफ्तारियां भी हुई हैं.भोपाल के सरकारी गर्ल्स कॉलेज में हिजाब पहने छात्रा से परिचयपत्र मांगने पर शोर हुआ.बड़ा सवाल है जब मुस्लिम देशों में महिलाएँ ही इसके खिलाफ बगावत पर उतर आईं हैं तो अपने देश में इस पर बवाल क्यों होता रहता है.? लान टेनिस की अंतर्राष्ट्रीय सितारा सानिया मिर्जा और अब मुक्केबाजी में भारत का नाम रोशन कर रहीं निखत जरीन अगर हिजाब पहनती तो क्या इस मुकाम तक पहुँच पातीं..?
कौन बनेगा करोड़पति की पहली महिला करोड़पति गिरीडीह की 37 साल की राहत तस्नीम माल में कपड़ों का शो रूम चला रही हैं.दिल्ली की कम्युनिकेशन मैनेजर नाजिया नसीम भी करोड़पति बन चुकी है. महिलाओं की आर्थिक आजाद/आत्मनिर्भरता के दौर में ऐसे पहनावे उनके आगे बढ़ने में बाधक ही बनते हैं.
गजब की इच्छाशक्ति और जिजीविषा के बल पर कौन बनेगा करोड़पति के पिछले सीजन में एक करोड़ के सवाल तक पहुँचने वाले राहुल नेमा खुद तो मशहूर हुए ही,उन्होंने मध्यप्रदेश की राजधानी को भी सुर्ख़ियों में ला दिया.इकतीस बरस के राहुल ऑस्टियोपोरोसिस की गंभीर व्याधि से पीड़ित होने पर भी भोपाल में ग्रामीण बैंक में असिस्टेंट मैनेजर हैं.जाहिर है इस ओहदे तक पहुँचने में राहुल के ज़ज्बे और हार ना मानने की इच्छाशक्ति के साथ उनके मातापिता सीमा और विजय नेमा के समर्पण की अनुकरणीय भूमिका रही है.राहुल के लालन पालन और उनको इस मुकाम तक पहुँचाने के लिए दोनों ने कितनी तपस्या और परिश्रम किया होगा इसकी हम सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं.
एक करोड़ के सवाल के जवाब पर श्योर ना होने से उन्होंने गेम छोड़ दिया.केबीसी में 50 लाख जीतकर राहुल ने अपने जैसे हजारों में नयी ऊर्जा और प्रेरणा का संचार किया है.वे उस ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित हैं जो बीस हजार में से किसी एक को होता है.इसमें हडि्डयां टूटती रहती हैं और सफर करते,नींद मे करवट लेते या किसी के द्वारा गलत तरीके से पकड़ लिए जाने पर फ्रैक्चर हो जाता है.तीन फुट से भी कम ऊंचाई वाले राहुल को 360 फ्रैक्चर हो चुके हैं.इन मुश्किलों के बावजूद वे जिंदादिल तरीके से रहते हैं.पिता भी सरकारी नौकरी में हैं.
शो में मौजूद माँ सीमा ने बताया की उसे पहले घर में पढ़ाना शुरू किया और स्कूल में चौथी में दाखिल किया.राहुल ने आठवीं में जिले में टॉप किया और उसे राष्ट्रीय बाल पुरस्कार भी मिल चुका है.राहुल ने बताया की जीती राशि से वो ऐसी किसी डिवाइस तक पहुँचने की कोशिश करेंगे जो खुद के पैरों पर खड़ा होने के उनके स्वप्न को साकार करने में मदद कर सके.
Posted on 2022-11-11 00:20:09
Posted on 2022-11-11 00:20:09
Posted on 2022-11-11 00:20:09
Posted on 2022-11-11 00:20:09