मैंने जब पत्रकारिता मे प्रवेश किया तब स्वर्गीय जोशीजी इन्फा नामक संवाद एजेंसी के भोपाल प्रतिनिधि थे। स्वर्गीय दुर्गादास की एजेंसी की राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी प्रतिषठा थी। तब नईदुनिया की धाक तेजी से जम रही थी और वह इन्फा के हवाले से जोशीजी का लेख हर हफ्ते छापता था। लेख के शीर्षक के नीचे उनका नाम यूँ छपता था-इन्फा के प्रादेशिक प्रतिनिधि मदनमोहन जोशी द्वारा। सबको लेख का बेसब्री से इंतजार रहता था। जब नईदुनिया का जलवा और बढ़ा और उसे भोपाल मे दमदार विशेष प्रतिनिधि की जरूरत महसूस हुई,तब जोशीजी विधिवत समूह का हिस्सा बन गए। इतने वरिषठ होते हुए भी विनोदी स्वभाव उन्हे बेहद सहज बना देता था।पुलिस अफसरों के साथ पत्रकारों की पार्टियों मे वे अपने अनुभवों को किस्सागोई अंदाज और मज़ाकिया लहजे मे कुछ ऐसे पेश करते थे जिससे महफिल ठहाकों से सराबोर हो जाती थी। सब उन्हें पसंद करते थे। मध्यप्रदेश की राजनीति और पत्रकारिता की तो वे डिक्शनरी जैसे थे।इसलिए मुख्यमंत्री हो, मंत्री हो,या विरोधो दल का नेता सब उनका सम्मान करते थे। जब मैं सीधी मे पदस्थ था तब का किस्सा है।तब के मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह एक बार जोशीजी को साथ लाए और एक आयोजन मे साथ लेकर पहुंचे। वहाँ जब कुछ अव्यवस्था और शोरगुल नजर आया तब अर्जुनसिंह माइक हाथ मे लेकर नाराजगी से बोले मैं इतने बड़े पत्रकार को लेकर आया हूँ उनके मन पर यहाँ की अफरा-तफरी का क्या प्रभाव पड़ेगा.? ऐसे मे मुझे आगे से किसी को सीधी लेकर आने मे शर्म आएगी।ऐसा था जोशीजी का रुतबा । भोपाल का जवाहरलाल नेहरू कैंसर अस्पताल और अनुसंधान केंद्र उनके पुरूषार्थ की जीती जागती मिसाल है। इतनी बड़ी संस्था को अकेले अपने दम पर खड़ा करना उनके ही बस की बात थी। निश्चय ही इसमे उनकी प्रबल इच्छा शक्ति,पत्रकारिता से बने सम्बन्धों और सहज स्वभाव का बड़ा योगदान था जिसने समर्थ लोगों को सहयोग के लिए प्रेरित किया। केवल अपने और अफ्नो के लिए जीने वालों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।
EnriqueWooky on सैयदना साहब के बंदोबस्त मे नहीं ली पुलिस
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