योग को दुनिया भर मे फैलाने मे महेश योगी के चेलों बीटल्स, इमरजेंसी काल के धीरेन्द्र ब्रह्मचारी, बाबा रामदेव और अब प्रधानमंत्री मोदी के योगदान की खूब चर्चा होती है। दैनिक भास्कर की एक खबर ने योग की शिक्षा मे मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र के अनमोल योगदान को रेखांकित किया है। अखबार ने सागर विवि के योग शिक्षा विभाग के पहले मुखिया 86 वर्षीय कालिदास जोशी से बातचीत छापी है। इसके मुताबिक सागर विवि के दूसरे कुलपति आरपी त्रिपाठी की पहल पर एक योगी ने वहाँ योग की गतिविधियां प्रारम्भ की। योगीजी जल्द ही विवि छोड़ गए और त्रिपाठी जी भी कुलपति पद से हट गए। बाद मे पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र मिश्र कुलपति बने और उन्होने योग की गतिविधियां फिर प्रारम्भ करने की पहल की। इस पर लोनावला के योग गुरु कुवलयानन्द से संपर्क किया गया जिन्होने कालिदास जोशी का नाम सुझाया जो तब पुणे के कॉलेज मे वैज्ञानिक थे। उनका परिवार सरकारी नौकरी छोड़ कर ऐसी जगह जाने के खिलाफ था जहां न कोई विभाग था और न कोई पद। इस पर कुलपति पंडित मिश्र ने अगस्त,1959 मे सागर विवि मे योग विभाग खुलवाया और जोशीजी को उसमे असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त कर दिया। कालिदास जोशी के अनुसार उनके 30 साल के कार्यकाल मे तीन हजार से ज्यादा छात्रों ने योग पर पीजी डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स किए और छह छात्रों ने पीएचडी भी की। यहाँ उल्लेख करना मौजू होगा की स्वर्गीय पुरुषोत्तमदास टंडन को लेकर पंडित मिश्र सीधे प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से भिड़ गए थे जिसके परिणामस्वरूप उन्हे राजनीतिक वनवास लेना पड़ा था। उनका कुलपति का कार्यकाल वही दौर था। बाद मे 1962 के चुनाव मे काँग्रेस को मध्यप्रदेश विधानसभा मे बहुमत नहीं मिला और नेहरू जी के प्रिय काटजू मुख्यमंत्री रहते चुनाव हार गए। जैसे तैसे काँग्रेस की सरकार तो बन गई पर देशलहरा और तख्तमल जी की गुटबाजी से पार्टी को उबारने के लिए इन्दिरा गांधी की पहल पर पंडित मिश्र का पुनर्वास हुआ और वे मुख्यमंत्री बने। राजनीति के चाणक्य और सख्त प्रशासन के लिए लौह पुरुष कहलाने वाले पंडित मिश्र ने 1967 के आम चुनाव मे मध्यप्रदेश मे काँग्रेस को बहुमत दिला कर इतिहास रच दिया।काँग्रेस विभाजन के समय वे इंदिराजी के सलाहकार थे। महाकाव्य क्रष्णायन के रचयिता मिश्रजी ने काँग्रेस विभाजन पर प्रामाणिक किताब लिविंग एन एरा भी लिखी जो तब खूब चर्चाओं मे रही थी।उन्होने उर्दू शेरों का हिन्दी मे अनुवाद कर अदभुत प्रयोग किया। उनके हिन्दी शेरों पर अनूदिता शीर्षक से किताब भी प्रकाशित हुई थी।
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