भारतीय प्रशासनिक सेवा मे 1956 मे आए गणितज्ञ ब्रह्मदेव शर्मा ने रिटायर होने के बाद भले बस्तर को अपनी कर्मभूमि बना लिया पर थे वे मध्यप्रदेश केडर के अधिकारी। अपना आखिरी वक्त उन्होने ग्वालियर मे बिताया और वहीं अंतिम सांस भी ली।इसके बावजूद उनके निधन पर मध्यप्रदेश के राजनैतिक और प्रशासनिक हल्कों और मीडिया की चुप्पी एहसानफरामोशी की इंतिहा है।बस्तर में आदिवासियों की मर्जी के खिलाफ जब भाजपा सरकार नें १९९२ में लौह कारखाना लगाने की कोशिश की तो ब्रह्मदेव शर्मा नें आदिवासियों का साथ दिया । इससे चिढ कर भाजपा के लोगों नें जगदलपुर में उन पर हमला किया, कपड़े फाड़ दिए और गले में जूतों का हार डाल कर जुलूस निकाला । इसके बाद उन्होने नें बस्तर जाना लगभग बंद कर दिया था। राज्यपाल और मुख्यमंत्री पता नहीं कैसे-कैसे महत्वहीन और अनजाने लोगों के मरने पर दुखी होकर अपना संवेदना संदेश जारी करने मे देर नहीं करते हैं। लेकिन मानवता और आदिवासियों के लिए तन-मन-धन से समर्पित ब्रह्मदत्त शर्मा के लिए दो लाइन का श्रद्धांजलि संदेश देने की उन्हे फुर्सत नहीं मिली..! भव्य अरेरा क्लब मे बिराजने वाले आईएएस अफसरों की एसोसिएशन ने अपनी बिरादरी के बिरले सदस्य की स्मृति मे कोई शोकसभा की, इसकी भी खबर नहीं है। और तो और दैनिक भास्कर,भोपाल ने उनकी याद मे लेख छापना तो दूर निधन पर चार लाइन की खबर तक छापने की जरूरत नहीं समझी,यही हाल कमोबेश अन्य अखबारो का रहा।जब नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ मे 2012 मे एक कलक्टर को अगवा कर लिया तब सरकार के कहने पर डॉक्टर ब्रह्मदेव ने उन्हे मुक्त कराया था। बस्तर गोलीकांड के बाद,जिसमे तत्कालीन पूर्व राजा प्रवीरचंद्र भंजदेव सहित कई आदिवासी मारे गए थे, ब्रह्मदेव बस्तर के कलक्टर बनाए गए थे। डॉक्टर ब्रह्मदेव ने तब बैलाडीला मे करीब 300 आदिवासी लड़कियों की उन गैर जनजातीय पुरुषों से करवा दी थी जो उनका दैहिक शोषण किया करते थे। निरीक्षण के दौरान उन्हें पता चला कि बैलाडीला में लौह अयस्क की खदानों में काम करने गए गैर जनजातीय पुरुषों ने शादी के नाम पर कई भोली-भाली आदिवासी युवतियों का दैहिक शोषण किया और फिर उन्हें छोड़ दिया.इनमे कई युवतियां गर्भवती हो गई। तब डॉक्टर ब्रह्मदेव ने यौन संबंध बनाने वाले लोगों,जिनमें वरिष्ठ अधिकारी भी थे,से दो टूक कहाकि या तो युवतियों को पत्नी के रूप में स्वीकार करो या आपराधिक मुकदमे के लिए तैयार हो जाओ. जाहिर है कलेक्टर के सख्त तेवर देख सबको शादी के लिए तैयार होना पड़ा इस घटना और बस्तर में रहते हुए डॉक्टर ब्रह्मदेव का आदिवासियों से गहरा लगाव हो गया और आदिवासी भी उन्हे अपना समझने लगे। .इसके बाद ब्रह्मदेव शर्मा ने आदिवासी जीवन, उनकी संस्कृति , अर्थव्यवस्था को बहुत गहराई से समझा। सरकार नें बस्तर में कमाई के लिए प्राकृतिक जंगल समाप्त कर के चीड के रोपण का प्लान बनाया तो कलेक्टर शर्मा नें उसे रद्दी की टोकरी में फेंक दिया और कहा कि जंगल आदिवासी का जीवन है उसे सरकार के मुनाफे के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। बाद में उन्हे भारत का आदिवासी आयुक्त बनाया गया। वे पूर्वोत्तर विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे इसके बाद वे आदिवासी मामलों के सबसे मुखर योद्धा के रूप में उभरे॰ बस्तर में जनजातीय इलाके में विश्व बैंक से मिले 200 करोड़ रुपये की लागत से 15 कारखाने लगाए जाने की योजना लाई. जिसका डॉक्टर ब्रह्मदेव ने खुलकर विरोध किया. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि इससे सालों से उन इलाकों में रह रहे जनजातीय लोग दूसरे क्षेत्र में पलायन करने के लिए मजबूर हो जाएंगे, जो सही नहीं है. लेकिन सरकार उनसे सहमत नहीं हुई. आखिर1980 में उन्होंने इस्तीफा देकर खुद को नौकरशाही से आजाद कर लिया और आदिवासियों की बेहतरी के लिए काम करने लगे. आदिवासियों के लिए इतना संघर्ष और उनके लिए लगातार काम करते रहने ने ही डॉक्टर ब्रह्मदेव को आदिवासियों का मसीहा बना दिया.
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